International Desk: एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Naresdera Modi) के अगले महीने यूक्रेन (Ukraine) जाने की संभावना है। दोनों देशों के अधिकारियों के बीच इस यात्रा की तैयारी जोर-शोर से की जा रही है, खासकर पूर्वी यूरोपीय देश में शांति के लिए नए वैश्विक प्रयासों के बीच। कूटनीतिक सूत्रों के अनुसार, पीएम मोदी के 24 अगस्त को यूक्रेनी राष्ट्रीय दिवस के आसपास कीव जाने की उम्मीद है, और इसके बाद वे पोलैंड की यात्रा करेंगे।प्रधानमंत्री मोदी ने 14 जून को इटली में G7 शिखर सम्मेलन के दौरान यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की से मुलाकात की।
जेलेंस्की ने पीएम मोदी को रूस-यूक्रेन संघर्ष के विभिन्न पहलुओं से अवगत कराया। दोनों नेताओं की पिछले साल मई में हिरोशिमा में हुए G7 शिखर सम्मेलन के दौरान भी मुलाकात हुई थी। पीएम मोदी ने कहा कि जेलेंस्की के साथ ‘उत्पादक’ बैठक के बाद भारत यूक्रेन के साथ द्विपक्षीय संबंधों को और मजबूत करने के लिए उत्सुक है। विदेश मंत्रालय ने कहा, “पीएम ने कहा कि भारत बातचीत और कूटनीति के माध्यम से संघर्ष के शांतिपूर्ण समाधान को प्रोत्साहित करता रहेगा और भारत एक शांतिपूर्ण समाधान का समर्थन करने के लिए अपनी क्षमता के भीतर हर संभव प्रयास करेगा।” भारत ने लगातार इस बात की वकालत की है कि यूक्रेन संघर्ष को हल करने का सबसे अच्छा तरीका बातचीत और कूटनीति है।
PM मोदी की पहली यूक्रेन यात्रा
अगर योजनाएं पक्की होती हैं, तो यह रूसी आक्रमण के बाद से प्रधानमंत्री मोदी की यूक्रेन की पहली यात्रा होगी, और वे चार दशकों में पोलैंड की यात्रा करने वाले पहले प्रधानमंत्री बन जाएंगे। भारतीय और यूक्रेनी अधिकारी पीएम मोदी की अगस्त के अंत में कीव यात्रा पर विचार कर रहे हैं, हालांकि यात्रा को लेकर अभी कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है क्योंकि लॉजिस्टिक और संबंधित मुद्दों के लिए बड़े पैमाने पर तैयारियों की आवश्यकता होगी। इस यात्रा के बारे में न तो भारत और न ही यूक्रेन की ओर से कोई आधिकारिक बयान आया है। यह यात्रा पीएम मोदी के रूस दौरे के एक महीने बाद होगी, जहां उन्होंने राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात की थी, जिसे लेकर जेलेंस्की ने निराशा व्यक्त की थी। जेलेंस्की ने पिछले महीने पीएम मोदी को उनके पुनर्निर्वाचन पर बधाई दी थी और उन्हें यूक्रेन आने का निमंत्रण दिया था।
रूस यात्रा और अमेरिका की प्रतिक्रिया
पीएम मोदी की रूस यात्रा को यूक्रेन के मुख्य सैन्य और वित्तीय समर्थक, संयुक्त राज्य अमेरिका ने भी चिंता के साथ देखा था, जिन्होंने भारत से आग्रह किया था कि वह रूस के साथ अपने लंबे समय से संबंधों का उपयोग कर पुतिन को यूक्रेन में दो साल से अधिक चल रहे युद्ध को समाप्त करने के लिए प्रेरित करे। ध्यान देने योग्य है कि यह पहली बार नहीं था जब प्रधानमंत्री मोदी ने पुतिन के सामने अपने विचार दृढ़ता से रखे थे। 2022 में, समरकंद में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन के दौरान, पीएम मोदी ने कहा था, “यह युद्ध का युग नहीं है।”पीएम मोदी का संभावित यूक्रेन दौरा भारत की शांति की दिशा में प्रयासों का एक महत्वपूर्ण कदम है। इससे न केवल भारत-यूक्रेन संबंध मजबूत होंगे, बल्कि वैश्विक शांति प्रयासों को भी बल मिलेगा। भारत का उद्देश्य है कि वह दोनों पक्षों के बीच बातचीत को प्रोत्साहित करे और एक शांतिपूर्ण समाधान की दिशा में मार्गदर्शन करे। यदि भारत सफलतापूर्वक मध्यस्थ की भूमिका निभाता है, तो यह क्षेत्र में शांति और स्थिरता को बढ़ावा देगा। इससे न केवल रूस और यूक्रेन बल्कि पूरे विश्व को लाभ होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का रूस और यूक्रेन का दौरा इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। म
भारत ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर तटस्थता और संतुलन बनाए रखा
रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे संघर्ष में भी भारत ने अब तक एक संतुलित रुख अपनाया है। भारत की यह नीति उसे एक विश्वासपात्र मध्यस्थ के रूप में प्रस्तुत करती है, जो दोनों पक्षों के हितों का सम्मान कर सकता है। रूस और यूक्रेन दोनों के साथ भारत के आर्थिक और राजनीतिक संबंध महत्वपूर्ण हैं। रूस के साथ भारत की रक्षा और ऊर्जा क्षेत्र में मजबूत साझेदारी है, जबकि यूक्रेन के साथ भी भारत के कई महत्वपूर्ण व्यापारिक संबंध हैं। इस संकट के समाधान से भारत को इन दोनों देशों के साथ अपने संबंधों को और मजबूत करने का अवसर मिल सकता है।
…तो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर और बढ़ेगी भारत की प्रतिष्ठा
यदि भारत सफलतापूर्वक इस संघर्ष को समाप्त करने में सहायता करता है, तो यह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की प्रतिष्ठा को और बढ़ा सकता है। भारत को एक प्रमुख वैश्विक खिलाड़ी के रूप में देखा जाएगा, जो शांति और स्थिरता के लिए सक्रिय रूप से काम करता है। प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा से दोनों देशों के बीच सीधी बातचीत की शुरुआत हो सकती है। यह बातचीत संघर्ष के समाधान की दिशा में पहला कदम हो सकता है। भारत की इस पहल को अंतरराष्ट्रीय समुदाय का समर्थन मिल सकता है। अन्य देश भी भारत की इस कोशिश को सकारात्मक दृष्टि से देख सकते हैं और इसके समर्थन में आगे आ सकते हैं।