नेशनल डेस्क: कभी इंसान की सबसे बड़ी मदद माने गए मोबाइल फोन आज मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़ा खतरा बनते जा रहे हैं। बाबा वेंगा, जिनकी भविष्यवाणियां अक्सर चौंकाने वाली हद तक सटीक मानी जाती हैं, ने वर्षों पहले चेताया था कि एक छोटा-सा उपकरण इंसान की सोच, व्यवहार और संबंधों पर गहरा असर डालेगा। उस समय यह बात कल्पना जैसी लगती थी, लेकिन आज के डिजिटल युग में यह चेतावनी कड़वी सच्चाई बन चुकी है।
बाबा वेंगा की भविष्यवाणी: एक छोटी मशीन से बड़ा खतरा
बाबा वेंगा ने भविष्यवाणी की थी कि इंसान एक ऐसे छोटे डिवाइस का गुलाम बन जाएगा, जो उसकी मानसिक शांति और सामाजिक रिश्तों को खोखला कर देगा। उनका इशारा आज के स्मार्टफोन की ओर था, जो अब जीवन का अभिन्न हिस्सा बन चुका है—लेकिन साथ ही मानसिक विकार, सामाजिक अलगाव और शारीरिक थकावट का कारण भी।
बच्चों और किशोरों पर सबसे ज्यादा असर
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) की हालिया रिपोर्ट में सामने आया है कि लगभग 24 प्रतिशत बच्चे रात को सोने से ठीक पहले स्मार्टफोन का इस्तेमाल करते हैं। यह आदत न केवल उनकी नींद में खलल डाल रही है, बल्कि उनके एकाग्रता स्तर को घटा रही है और मानसिक रूप से अस्थिर कर रही है। लगातार स्क्रीन से चिपके रहने से बच्चे शारीरिक गतिविधियों से दूर होते जा रहे हैं। नतीजतन, उनका विकास प्रभावित हो रहा है और वे वास्तविक जीवन के सामाजिक अनुभवों से वंचित हो रहे हैं। यह स्थिति न केवल एक चेतावनी है, बल्कि एक ऐसा संकट है जिसे नजरअंदाज करना अब मुश्किल हो गया है। अगर समय रहते कदम नहीं उठाए गए, तो यह आदत आने वाली पीढ़ियों के मानसिक और सामाजिक विकास पर गंभीर प्रभाव डाल सकती है।
वयस्क भी नहीं हैं अछूते
सिर्फ बच्चे ही नहीं, बल्कि बड़े भी इस डिजिटल लत के शिकार हो रहे हैं।
- लेट नाइट स्क्रॉलिंग, सोशल मीडिया की लत, और हर पल अपडेट चेक करना न सिर्फ नींद उड़ा रहा है, बल्कि आंखों की रोशनी, गर्दन दर्द जैसी समस्याएं भी बढ़ा रहा है।
- मानसिक रूप से भी यह आदत तनाव, अकेलापन और भावनात्मक थकान को जन्म दे रही है।
- वर्चुअल दुनिया की आदत ने असल जिंदगी के रिश्तों को कमज़ोर करना शुरू कर दिया है।
शरीर पर असर: एक ‘स्मार्ट’ नुकसान
मोबाइल सिर्फ मन नहीं, शरीर को भी चुपचाप नुकसान पहुंचा रहा है।
– आंखों की थकान: स्क्रीन पर लगातार देखने से आंखें सूखने लगती हैं, जलन होती है और साफ दिखना भी मुश्किल हो जाता है।
– गलत बैठने की आदत: हमेशा झुककर फोन देखने से गर्दन और पीठ में खिंचाव पैदा होता है, जिसे अब ‘टेक्स्ट नेक’ कहा जाने लगा है।
– नींद की गड़बड़ी: मोबाइल की नीली रोशनी शरीर के नींद नियंत्रक हार्मोन को बिगाड़ देती है, जिससे अच्छी नींद दूर होती जाती है।
दिमाग पर असर
मोबाइल का लगातार इस्तेमाल मानसिक संतुलन को भी डगमगा रहा है।
– तनाव और अवसाद: शोध बताते हैं कि मोबाइल पर ज़्यादा वक्त बिताने वाले लोग अधिक तनाव, घबराहट और डिप्रेशन का शिकार हो रहे हैं।
– ध्यान भटकाव: हर मिनट नोटिफिकेशन और लगातार बदलते कंटेंट के कारण ध्यान केंद्रित करना मुश्किल हो गया है।
– भावनात्मक दूरी: वर्चुअल कनेक्शन ने इंसान को अपनों से दूर कर दिया है। जुड़ाव की जगह अब ‘देखा लेकिन जवाब नहीं दिया’ जैसी बातें रिश्तों को प्रभावित कर रही हैं।
रिश्तों और समाज पर असर: संवाद की जगह सन्नाटा
मोबाइल की लत अब केवल व्यक्ति की समस्या नहीं रही, यह परिवार और समाज की बुनियाद को भी कमजोर कर रही है।
– परिवारों में दूरी: एक ही छत के नीचे रहने के बावजूद लोग एक-दूसरे से बातचीत करने की जगह मोबाइल में खोए रहते हैं।
– काम पर असर: बार-बार फोन चेक करने की आदत ऑफिस में काम की गुणवत्ता और फोकस को बिगाड़ देती है।
– सामाजिक अलगाव: कभी जो दोस्त आमने-सामने मिलते थे, अब सिर्फ चैट बॉक्स में रह गए हैं। इससे सामाजिक रिश्तों की गर्मजोशी कम हो रही है।
अब क्या करें?
बाबा वेंगा की चेतावनी को नजरअंदाज करना अब मुश्किल है। वक्त आ गया है कि हम अपनी डिजिटल आदतों को नियंत्रित करें।
- स्क्रीन टाइम सीमित करें,
- सोने से एक घंटा पहले फोन से दूरी बनाएं,
- परिवार और दोस्तों के साथ असली वक्त बिताएं,
- और सबसे जरूरी—अपने मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता दें।