केप टाउन से आई एक ताजा स्टडी बता रही है कि दुनिया के कोने-कोने में लाखों बच्चे हिंसा की छांव में बड़े हो रहे हैं। यह हिंसा कभी घर की चारदीवारी में तो कभी मोहल्ले की गलियों में नजर आती है। कुछ बच्चे इसका सीधा शिकार बनते हैं, तो कुछ अपनों के बीच झगड़ों या इलाके में फैली अशांति से अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होते हैं। किसी भी तरह, हिंसा का यह माहौल बच्चों की सेहत पर भारी पड़ता है।
रिसर्च बताती है कि मानसिक परेशानियां स्कूल जाने से बहुत पहले, बचपन की दहलीज पर ही शुरू हो जाती हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि शुरुआती उम्र में हिंसा का सामना करने वाले बच्चों पर इसका असर उम्रभर रह सकता है। हम न्यूरोसाइंस और बाल मनोविज्ञान के क्षेत्र में काम करने वाले शोधकर्ता हैं, और कम-मध्यम आय वाले देशों में छोटे बच्चों पर हिंसा के शुरुआती प्रभावों को समझने की कोशिश कर रहे हैं। इस लेख में हम 20 देशों की स्टडीज की समीक्षा और दक्षिण अफ्रीका के हजारों बच्चों से मिले नए डेटा के आधार पर निष्कर्ष साझा कर रहे हैं। नतीजे चौंकाने वाले हैं: जितने देशों का हमने विश्लेषण किया, उन सबमें बच्चों के लिए हिंसा का अनुभव बेहद सामान्य है, और मानसिक स्वास्थ्य पर इसका बोझ बचपन में ही महसूस होने लगता है। इसे रोकने के लिए परिवार से लेकर सरकार तक हर स्तर पर फौरी कदम उठाने होंगे।

