नेशनल डेस्कः सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि जमानत की शर्तों के मुताबिक दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अपनी अंतरिम जमानत की अवधि के दौरान अपने कार्यालय या दिल्ली सचिवालय नहीं जा सकेंगे। अदालत ने आम आदमी पार्टी (आप) के राष्ट्रीय संयोजक केजरीवाल से कहा है कि वह 21 दिन की अंतरिम जमानत अवधि के दौरान तब तक किसी भी सरकारी फाइल पर हस्ताक्षर नहीं करेंगे, जब तक उपराज्यपाल की मंजूरी प्राप्त करने के लिए ऐसा करना आवश्यक न हो। जस्टिस संजीव खन्ना और दीपांकर दत्ता की पीठ ने आप नेता पर जमानत की कई शर्तें लगाते हुए कहा, ‘‘वह (केजरीवाल) मुख्यमंत्री कार्यालय और दिल्ली सचिवालय का दौरा नहीं करेंगे।”
शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘वह अपनी ओर से दिए गए इस बयान से बंधे होंगे कि वह सरकारी फाइल पर तब तक हस्ताक्षर नहीं करेंगे जब तक कि दिल्ली के उपराज्यपाल की मंजूरी/अनुमोदन प्राप्त करने के लिए ऐसा करना आवश्यक न हो।” पीठ ने केजरीवाल को जेल अधीक्षक की संतुष्टि के लिए 50,000 रुपये के जमानती बॉण्ड और इतनी ही राशि के मुचलका जमा कराने का भी निर्देश दिया।
शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘वह मौजूदा मामले में अपनी भूमिका के संबंध में कोई टिप्पणी नहीं करेंगे और किसी भी गवाह के साथ बातचीत भी नहीं करेंगे और/या मामले से जुड़ी किसी भी आधिकारिक फाइल तक उनकी पहुंच नहीं होगी।” न्यायालय ने केजरीवाल को राहत देते हुए कहा कि इस बात में कोई संदेह नहीं है कि उनके खिलाफ गंभीर आरोप लगाए गए हैं, लेकिन उन्हें अभी तक दोषी नहीं ठहराया गया है।
पीठ ने कहा, ‘‘उनका कोई आपराधिक इतिहास नहीं है। वह समाज के लिए खतरा नहीं हैं।” पीठ ने केजरीवाल को बड़ी राहत प्रदान करते हुए उन्हें मौजूदा लोकसभा चुनाव में प्रचार करने के लिए एक जून तक अंतरिम जमानत दे दी। शीर्ष अदालत ने कहा कि केजरीवाल को दो जून को आत्मसमर्पण करना होगा और वापस जेल जाना होगा। यह मामला 2021-22 के लिए दिल्ली सरकार की आबकारी नीति के निर्माण और कार्यान्वयन में कथित भ्रष्टाचार और धनशोधन से संबंधित है। यह नीति अब निरस्त की जा चुकी है।