नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की मुखपत्र कही जाने वाली पत्रिका ऑर्गनाइजर ने आम चुनाव में भाजपा के बहुमत से चूकने और औसत प्रदर्शन के लिए मूल कार्यकर्ताओं की उपेक्षा, दल-बदलू नेताओं पर ज्यादा भरोसा और संघ से दूरी को जिम्मेदार ठहराते हुए तीखा निशाना साधा है। पार्टी की चुनावी रणनीति की तीखी आलोचना करते हुए पत्रिका के लेख में कहा गया कि भाजपा ने उम्मीदवार बनाने में समर्पित और लोकप्रिय नेताओं व कार्यकर्ताओं के बदले मौसमी नेताओं को तरजीह दी। पार्टी नेताओं, कार्यकर्ताओं और उम्मीदवारों ने संघ और स्वयंसेवकों से संपर्क नहीं किया। अतिआत्मविश्वास के शिकार कार्यकर्ता और नरेंद्र मोदी के आभामंडल का आनंद लेने वाले, अपने ही बनाए गुब्बारे में कैद नेताओं ने सड़कों पर लोगों की आवाज नहीं सुनी। संघ के आजीवन सदस्य रतन शारदा ने लेख में समर्पित कार्यकर्ताओं-सांसदों पर एक चौथाई दलबदलू नेताओं को तरजीह देने की कड़ी आलोचना करते हुए कहा, मैदान में लक्ष्य, सोशल मीडिया पर पोस्टर और सेल्फी शेयर करने से नहीं, कड़ी मेहनत से हासिल होता है। पीएम मोदी का 400 से अधिक सीटों का आह्वान नेताओं-कार्यकर्ताओं के लिए लक्ष्य और विपक्ष के लिए चुनौती था, लेकिन सोशल मीडिया सहायता प्राप्त सेल्फी संचालित कार्यकर्ता और नेता, आएगा तो मोदी ही, अबकी बार 400 प्लस जैसे नारे से आत्ममुग्धता और अतिआत्मविश्वास का शिकार हो गए।
अजीत से क्यों हाथ मिलाया ?
संघ ने चुनाव परिणाम को प्रभावित करने में भाजपा की अत्यधिक और अनावश्यक राजनीति को भी जिम्मेदार ठहराया। पार्टी ने शिवसेना शिंदे के साथ आरामदायक बहुमत हासिल होने के बावजूद एनसीपी अजीत से हाथ मिलने पर संवाल उठाए। लेख में कहा गया कि इसके कारण दशकों कांग्रेस की विचारधारा से संघर्ष कर प्रताड़ित होने वाले समर्थक मतदाता निराश हुए। एनसीपी के रूप में परोक्ष रूप से उस कांग्रेस को शामिल किया गया, जिसने हिंदू आतंकवाद का हौव्या खड़ा किया और 26/11 को संघ की साजिश बताया। इस निर्णय ने संघ समर्थकों को दुख पहुंचाया और • भाजपा की भी छवि खराब हुई।
मौसमी नेताओं पर मेहरबानी क्यों?
आम चुनाव में बड़ी संख्या में दूसरे दलों के नेताओं को उम्मीदवार बनाने पर भी तीखे सवाल किए गए हैं। हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव का उदाहरण देते हुए कहा गया कि वहां 30 फीसदी मौसमी नेताओं को समर्पित नेताओं-कार्यकर्ताओं पर मिली तरजीह के कारण हुई हार से सबक नहीं लिया गया। आम चुनाव में ऐसे एक चौथाई नेताओं को टिकट देने के लिए लोकप्रिय सांसदों की बलि ली गई।
पार्टी की कार्यशैली पर सवाल उठाते हुए कहा गया है कि भाजपा में अब दिखावा नया मानदंड है। सोशल मीडिया पर सेल्फी शेयर करना, पोस्ट लिखना और इसे, चिपका कर दिखावा करना ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है। अगर पार्टी संघ तक नहीं पहुंचती तो उन्हें जवाब देना होगा कि उन्होंने ऐसा क्यों सोचा कि इसकी जरूरत नहीं है ?
लेख में आम चुनाव के दौरान संघ से सहयोग नहीं लेने का भी आरोप लगाया गया है। कहा गया कि उम्मीदवारों, नेताओं, कार्यकर्ताओं ने स्वयंसेवकों का सहयोग नहीं लिया। आधिकारिक संघ से नहीं लिया सहयोग तौर पर राष्ट्र निर्माण, राष्ट्रीय एकीकरण, राष्ट्रवादी ताकतों को समर्थन करने के लिए छोटी-छोटी बैठकें करने का निर्णय लिया गया। अकेले दिल्ली में 1.20 लाख बैठकें हुई, मेरा अनुभव कहता है कि दूसरे राज्यों में ऐसा नहीं हुआ।