नई दिल्ली (मार्च 15, 2024) गुरुद्वारा श्री गुरु सिंह सभा, मोती नगर द्वारा दिल्ली विजय दिवस मनाया गया, जो 15 मार्च 1783 को सिख जनरलों द्वारा दिल्ली की विजय को समर्पित था। इस अवसर पर आयोजित विशेष गुरमति समारोह के दौरान बीबी पुष्पिंदर कौर खालसा के ढाडी जत्थे ने ढाडी वार गाकर लोगों के सामने दिल्ली फतेह दिवस का इतिहास पेश किया। इसके साथ ही भाई वाहेगुरु सिंह के कीर्तनी जत्थे ने गुरबानी कीर्तन गाया। गुरुद्वारा साहिब के अध्यक्ष भाई रविंदर सिंह बिट्टू और महासचिव स. राजा सिंह ने कार्यक्रम में सेवाएं देने वाली शख्सियतों को सम्मानित करते हुए लोगों को नए नानकशाही वर्ष की शुरुआत की बधाई दी।
भाई बीबा सिंह खालसा स्कूल के मैनेजर डॉ. परमिंदर पाल सिंह ने स्टेज सचिव के तौर पर सेवाएं देते हुए श्रद्धालुओं को दिल्ली फतेह दिवस के इतिहास के बारे में संक्षिप्त जानकारी दी। डॉ. परमिंदर पाल सिंह ने कहा कि दिल्ली की संगत सदैव बाबा बाघेल सिंह की ऋणी रहेगी. क्योंकि बाबा बाघेल सिंह और उनके साथी सेनापतियों बाबा जस्सा सिंह अहलूवालिया, बाबा जस्सा सिंह रामगढ़िया, बाबा महा सिंह शुकरचक्किया और बाबा तारा सिंह घेबा ने दिल्ली पर विजय प्राप्त की और लाल किले पर भगवा झंडा फहराया। लेकिन सिख जनरलों ने गुरुओं के स्थानों को चिन्हित करने और स्थापित करने के लिए अपने विजयी राज्य का बलिदान दे दिया था। अन्यत्र कहीं भी ऐसा उल्लेख नहीं मिलता कि सेनापतियों ने अपने धार्मिक स्थल स्थापित करने के लिए सेना द्वारा जीते गए क्षेत्र को छोड़ दिया हो। अतः यह कहना होगा कि इतिहासकारों ने बाबा बाघेल सिंह के साथ न्याय नहीं किया है। लेकिन आज अगर हम दिल्ली के ऐतिहासिक तीर्थों के दर्शन कर रहे हैं तो उसके पीछे बाबा बाघेल सिंह की सैन्य ताकत, राजनीतिक और धार्मिक सोच और कूटनीति का उनका ज्ञान महत्वपूर्ण था। जिसके चलते महज 9 महीने के अंदर ही दिल्ली के 7 ऐतिहासिक गुरुद्वारों की पहचान कर उन्हें स्थापित कर दिया गया। हालाँकि, इस सारी कवायद के बीच गुरुद्वारा रकाबगंज साहिब की जगह पर गुरुद्वारा साहिब के निर्माण के लिए सरकार के साथ आम सहमति बनाने का काम सबसे कठिन था।