Delhi Pollution News: सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) को रोजाना 3,000 टन ठोस अपशिष्ट को बिना उपचार के छोड़ने पर कड़ी फटकार लगाई है। अदालत ने इस मुद्दे को गंभीर मानते हुए एमसीडी से सवाल किया कि राजधानी में आखिर हो क्या रहा है।
केंद्र और राज्य सरकारों के बीच समन्वय की कमी
सुनवाई के दौरान न्याय मित्र के रूप में वरिष्ठ अधिवक्ता अपराजिता सिंह ने बताया कि दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार के बीच समन्वय की कमी इस समस्या का मुख्य कारण है। उन्होंने कहा कि इस मुद्दे को सुलझाने के लिए दोनों सरकारों को मिलकर काम करना होगा। अदालत ने केंद्र सरकार से इस मामले में कदम उठाने को कहा और चेतावनी दी कि अगर समस्या का समाधान नहीं हुआ तो कठोर निर्णय लेने पड़ सकते हैं।
2027 तक साफ होगा कूड़ा? सुप्रीम कोर्ट ने जताई हैरानी
अदालत ने एमसीडी के हलफनामे पर सवाल उठाते हुए कहा कि राष्ट्रीय राजधानी में 2027 तक कूड़े का ढेर पड़ा रहेगा। यह स्थिति चौंकाने वाली है। पीठ ने कहा कि अगर अभी 3,000 टन कूड़ा रोजाना निकल रहा है तो यह एक साल में 5,000 टन तक पहुंच सकता है। अदालत ने कहा कि ऐसे गंभीर मुद्दों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता और सरकारें इस पर आंखें बंद करके नहीं बैठ सकतीं। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर सख्त रुख अपनाते हुए कहा कि ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 को लागू करने में हो रही देरी को लेकर जल्द कदम उठाए जाएं। अगर समस्या का समाधान समय पर नहीं हुआ तो पर्यावरण और स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ सकते हैं।
अदालत ने क्या कहा ?
जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने एमसीडी के उस हलफनामे पर नाराजगी जताई जिसमें कहा गया है कि दिसंबर 2027 तक ठोस अपशिष्ट का निपटान किया जाएगा। अदालत ने यह भी कहा कि अगर जरूरत पड़ी तो राजधानी में निर्माण गतिविधियों पर रोक लगाने जैसे कठोर निर्देश दिए जा सकते हैं। कोर्ट ने सवाल किया कि यह अनुपचारित कूड़ा कहां डाला जाता है। इस पर एमसीडी के वकील ने जानकारी दी कि भलस्वा और गाजीपुर की लैंडफिल साइट्स पर इसे फेंका जाता है।