पिछले साल मई की तपती दोपहर में दिल्ली के गाजीपुर इलाके में एक कूड़ा बीनने वाला व्यक्ति गर्मी के कारण बेहोश होकर गिर पड़ा। पेशे से सफाई कर्मचारी मजीदा बेगम ने उसे इस हालत में देखा और बताया कि ‘परिवार उसे अस्पताल ले गया। लेकिन उसे मृत घोषित कर दिया गया। उनके पास इस बात का कोई सबूत नहीं था कि वह गर्मी के कारण मरा है, इसलिए उन्हें कोई मुआवजा नहीं मिला।’ उसकी मौत को कभी आधिकारिक तौर पर गर्मी से मौत के रूप में नहीं गिना गया। भारत में अत्यधिक गर्मी के कारण मरने वाले अनगिनत लोगों में से एक मामला है, जो कभी रिकॉर्ड में दर्ज नहीं किए गए और न ही उन्हें कभी मुआवजा दिया गया। ‘न्यूज़ एजेंसी’ द्वारा की गई पड़ताल से पता चलता है कि असंगत, पुरानी रिपोर्टिंग प्रणाली के कारण वास्तविक मौत के आंकड़े दब जाते हैं जिससे जन जागरूकता और नीतिगत कार्रवाई दोनों कमजोर हो रही है। गर्मी से संबंधित मौत पर सटीक डाटा यह पहचानने में मदद करता है कि सबसे अधिक जोखिम किसको है क्योंकि इसके बिना, सरकार प्रभावी ढंग से योजना नहीं बना सकती, लक्षित नीतियां नहीं बना सकती या जीवन बचाने के लिए समय पर कार्रवाई नहीं कर सकती।
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