महाराष्ट्र और झारखंड में विधानसभा चुनाव के साथ ही उत्तर प्रदेश की नौ विधानसभा सीटों के लिए उपचुनाव हो रहे हैं. अमूमन उपचुनावों से दूरी बनाने वाली बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने भी इस बार नौ सीटों के रण में अपने रणबांकुरे उतारे हैं. बसपा ने मायावती के उत्तराधिकारी आकाश आनंद को झारखंड और महाराष्ट्र जैसे चुनावी राज्यों की जिम्मेदारी दी है. साथ ही यूपी उपचुनाव के लिए 40 स्टार प्रचारकों की भारी-भरकम लिस्ट भी जारी कर दी है. आकाश आनंद को चुनावी राज्यों की जिम्मेदारी दिया जाना और स्टार प्रचारकों की लिस्ट में मायावती के बाद नंबर दो पर सतीशचंद्र मिश्रा का नाम होना, इसके पीछे बसपा की रणनीति क्या है? बात इसे लेकर भी हो रही है.
1- उपचुनाव नतीजों के बाद न बने आम चुनाव जैसी स्थितिः लोकसभा चुनाव में आकाश आनंद खासे सक्रिय थे. आकाश आनंद ने यूपी में ताबड़तोड़ रैलियां कीं लेकिन नतीजे आए तो हाथी खाली हाथ ही रह गया. इसे आकाश आनंद की नेतृत्व क्षमता से जोड़ा जाने लगा था, विफलता बताया जाने लगा था. बसपा नहीं चाहती कि उपचुनाव नतीजों के बाद वैसी स्थिति बने.
2- सर्वाइवल का सवाल बने उपचुनावः बसपा के लिए यूपी उपचुनाव एक तरह से सर्वाइवल का सवाल बन गए हैं. 2022 के यूपी उपचुनाव में एक विधानसभा सीट पर सिमटी बसपा आम चुनाव में खाली हाथ रह गई थी. पार्टी के सिमटते जनाधार को लेकर भी काफी बात हो रही है, मायावती और बसपा के सियासी भविष्य पर सवाल उठ रहे हैं. ऐसे में सर्वाइवल का सवाल बन चुके यूपी उपचुनाव में मायावती सियासत में अपेक्षाकृत नवप्रवेशी आकाश आनंद को फ्रंट पर डालने की जगह खुद मोर्चा संभालने के मोड में नजर आ रही हैं.
3- पुराने नेता, पुरानी रणनीति आजमाने की कोशिशः मायावती खुद भी कहती रही हैं कि बसपा पार्टी नहीं, एक आंदोलन है. इस आंदोलन का कोर वोटर, कोर सपोर्टर दलित मतदाता रहे हैं लेकिन साल 2007 के बाद बसपा का वोट शेयर लगातार गिरता ही चला गया. माायावती अब पुराने वोटर-सपोर्टर को फिर से साथ लाने की कोशिश में जुटी हैं.
मायावती की रणनीति अनुभवी नेताओं और पुराने पैंतरों को फिर से आजमाने की भी हो सकती है. आकाश आनंद युवा हैं और उनका काम करने का तरीका भी मायावती और बसपा की परंपरागत कार्यशैली से अलग है. आकाश आनंद की अपनी टीम है. ऐसे में अगर वह यूपी उपचुनाव में अधिक सक्रिय होते तो मायावती की कोर टीम के कामकाज पर असर पड़ने की संभावनाओं से भी इनकार नहीं किया जा सकता.
4- चंद्रशेखर बनाम आकाश आनंद न हो जाए मुकाबलाः यूपी उपचुनाव में एडवोकेट चंद्रशेखर की अगुवाई वाली आजाद समाज पार्टी भी मैदान में हैं. दलित पॉलिटिक्स की पिच पर बसपा के लिए चुनौती बनी एएसपी की सक्रियता के बीच आकाश आनंद की सक्रियता से मामला चंद्रशेखर बनाम आकाश हो सकता था.
बसपा को वैसे भी बहुत पाने की उम्मीद इन उपचुनावों से नहीं है लेकिन एएसपी के प्रदर्शन से तुलना तो हो ही सकती है. पार्टी कहीं एएसपी से पीछे रही तो उसे चंद्रशेखर के सामने आकाश आनंद की विफलता की तरह भी देखा जा सकता था. अब आकाश प्रचार की कमान संभालेंगे भी तो बसपा के पास यह तर्क होगा कि उनका फोकस महाराष्ट्र और झारखंड के चुनावों पर था.
5- महाराष्ट्र में खाता खुला तो जय-जयः महाराष्ट्र चुनाव में बसपा खाता खोलने में सफल हो जाती है तो भी आकाश आनंद की जय-जय हो जाएगी. इससे लोकसभा चुनाव में विफलता का दाग भी धुल जाएगा. महाराष्ट्र में भी ठीक-ठाक संख्या में दलित हैं और सूबे में आरपीआई, वंचित बहुजन अघाड़ी जैसी पार्टियां पहले से ही दलित पॉलिटिक्स में सक्रिय हैं. ऐसे में बसपा का एक सीट जीतना भी आकाश आनंद के लिए बड़ी सफलता की तरह होगी.