ब्रिटिश हुकूमत से देश की आजादी के लिए तमाम क्रांतिकारियों ने अपने प्राणों की आहुति दी थी, इतिहास के पन्नों में शहीदों की शौर्य गाथा दर्ज है। चाहे वह चौरीचौरा की घटना हो या फिर काकोरी ट्रेन एक्शन, इन सभी घटनाओं का उद्देश्य ब्रिटिश हुकूमत की नींव को हिलाना था। काकोरी ट्रेन एक्शन के 99 वर्ष पूरे हो चुके हैं, मगर एक्शन की गवाह एकमात्र ट्रेन का संचालन कोरोना काल से बंद कर दिया गया है।
9 अगस्त 1925 में काकोरी ट्रेन एक्शन हुआ था। तब देश की आजादी का संघर्ष तेज हो चुका था। युवा क्रांतिकारियों का एक मात्र उद्देश्य था कि आजाद भारत का सपना साकार हो। हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के युवा क्रांतिकारियों ने ब्रिटिश हुकूमत से लोहा लेने के लिए सरकारी खजाने को लूटने की योजना बनाई। जिसमें पंडित रामप्रसाद बिस्मिल, राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, अशफाक उल्ला खां और ठाकुर रोशन सिंह समेत अन्य क्रांतिकारियों की भूमिका थी। आजादी के सघंर्ष की एक मात्र गवाह सहारनपुर-लखनऊ पैसेंजर ट्रेन है, वैश्विक महामारी कोविड-19 में इस ट्रेन का संचालन बंद कर दिया गया। ये वही पैसेंजर ट्रेन है जो सरकारी खजाने को लेकर सहारनपुर से लखनऊ के लिए रवाना हुई थी, लेकिन काकोरी रेलवे स्टेशन से कुछ ही दूरी पर बाजनगर में युवा क्रांतिकारियों ने इस खजाने को देश की आजादी के लिए लूट लिया था। हालांकि 19 दिसंबर 1927 को काकोरी ट्रेन एक्शन में शामिल क्रांतिकारी राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, पं. राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां तथा ठाकुर रोशन सिंह को फांसी की सजा सुनाई गई।
अंग्रेजों ने पानी की तरह बहाया लाखों रुपया
इतिहास के जानकार प्रोफेसर असमत मलिहाबादी ने बताया कि हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के क्रांतिकारियों ने काकोरी कांड से अंग्रेजों को खुली चुनौती दी थी। अंग्रेज पूरी तरह से झल्ला चुके थे। क्रांतिकारियों कि गिरफ्तारी के लिए अंग्रेजों ने पूरी ताक लगा दी थी। 4600 रुपये की लूट करने वाले इन क्रांतिकारियों को गिरफ्तार करने के लिए अंग्रेजों ने लगभग 10 लाख रुपये खर्च किए थे।