फागुन मास की शिवरात्री को महाशिवरात्रि के नाम से जाना जाता है। इस बार महाशिवरात्रि शुक्रवार को है। मान्यताओं के अनुसार कृष्ण चतुदर्शी को ही भगवान शिव और मां पार्वती का विवाह हुआ था। इसलिए महाशिवरात्रि पर्व को बेहद पवित्र पर्व माना गया है। ज्योतिषाचार्य की सलाह है कि विधि-विधान पूर्वक पूजा अर्चना करने से भोले नाथ की कृपा बरसती है। हिंदू पंचांग के मुताबिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को शिवरात्रि का उपवास किया जाता है।
आदितीर्थ सूकरक्षेत्र धाम, सोरों जी के पुराणेतिहासाचार्य राहुल वाशिष्ठ ने बताया कि महाशिवरात्रि के व्रत में फाल्गुन कृष्ण प्रदोष व निशीथ व्यापिनी चतुर्दशी ग्राह्य है। यह व्रत प्रतिवर्ष करने से ‘नित्य’और किसी कामना पूर्वक करने से ‘काम्य’ होता है। जिस तिथि का जो स्वामी हो उसका उस तिथि में अर्चन करना अतिशय उत्तम होता है। चतुर्दशी के स्वामी शिव हैं। अतः उनकी रात्रि में व्रत किया जाने से इस व्रत का नाम ‘शिवरात्रि’ होना सार्थक हो जाता है। यद्यपि प्रत्येक मास की कृष्ण चतुर्दशी शिवरात्रि होती है और शिवभक्त प्रत्येक कृष्ण चतुर्दशी का व्रत करते ही हैं, किन्तु फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी के निशीथ में ज्योतिर्लिंग का प्रादुर्भाव हुआ था। इस कारण यह ‘महाशिवरात्रि’ मानी जाती है। सभी वर्ण व वर्ग के स्त्री-पुरुष-बाल-युवा-वृद्ध इस व्रत को कर सकते हैं।
पूजा विधि
यह उपोष्य है, इसके न करने से दोष होता है। महाशिवरात्रि के व्रत का पारण चतुर्दशी में ही करना चाहिए। व्रती को चाहिए कि फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को प्रातःकाल की संध्या आदि से निवृत्त होकर भाल पर त्रिपुंड्र तिलक और गले में रुद्राक्ष की माला धारण करके हाथ में जल लेकर व्रत की प्रतिज्ञा करें। दिनभर मौन रहकर शिवजी का स्मरण करते रहें।
तत्पश्चात सायंकाल के समय फिर स्नान करके शिव मंदिर में जाकर सुविधानुसार पूर्व या उत्तर मुख होकर बैठें और त्रिपुंड्र तिलक तथा रुद्राक्ष धारण करके शिवपूजन का संकल्प करें। तदोपरांत ऋतुकालिक गंध, पुष्प, बिल्वपत्र, धतूरे के फूल, घृत मिश्रित गुग्गुल की धूप, दीप, नैवेद्य और नीराजनादि आवश्यक सामग्री समीप रखकर रात्रि के प्रथम प्रहर में पहली, द्वितीय प्रहर में दूसरी, तृतीय प्रहर में तीसरी और चतुर्थ प्रहर में चौथी पूजा करें। ऐसा करने से पाठ, पूजा, जागरण व उपवास ये सब संपन्न हो सकते हैं। शास्त्रवचन है कि फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को शिवजी का पूजन, जागरण और उपवास करने वाला मनुष्य माता का दूध कभी नहीं पी सकता अर्थात् उसका पुनर्जन्म नहीं होता है।
शुभ मुहूर्त
– प्रथम प्रहर– रात्रि 06:19 से 09:22 तक,
– द्वितीय प्रहर– रात्रि 09:22 से 12:25 तक,
– तृतीय प्रहर– रात्रि 12:25 से 03:29 तक,
– चतुर्थ प्रहर– रात्रि 03:29 से 06:32 तक।