रामायण से जुड़े अनजान पहलू: अधिकांश लोगों को रामायण की कहानी पता है लेकिन इस महाकाव्य से जुड़े कुछ ऐसे भी रहस्य हैं जिनके बारे में लोगों को जानकारी नहीं है. रामायण से जुड़े कुछ ऐसे ही अनजान पहलुओं को जानते हैं.
गायत्री मंत्र में 24 अक्षर, रामायण में 24000
गायत्री मंत्र में 24 अक्षर होते हैं और वाल्मीकि रामायण में 24,000 श्लोक हैं. रामायण के हर 1000 श्लोक के बाद आने वाले पहले अक्षर से गायत्री मंत्र बनता है. यह मंत्र इस पवित्र महाकाव्य का सार है जिसे सर्वप्रथम ऋग्वेद में उल्लिखित किया गया है.
शांता थीं राम की बड़ी बहन (रामायण से जुड़े अनजान पहलू)
श्रीराम की एक बहन भी थीं जिनका नाम शांता था. वे आयु में चारों भाइयों से काफी बड़ी थीं और उनकी माता कौशल्या थीं. मान्यता है कि एक बार अंगदेश के राजा रोमपद और उनकी रानी वर्षिणी अयोध्या आए. उनके कोई संतान नहीं थी. बातचीत के दौरान राजा दशरथ को जब यह बात मालूम हुई तो उन्होंने शांता को संतान के रूप में उन्हें दे दिया. रोमपद और वर्षिणी ने बहुत स्नेह से उसका पालन-पोषण किया और माता-पिता के सभी कर्तव्य निभाए.
राम जी विष्णु तो अन्य भाई किसके अवतार ?
श्रीराम को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है तो लक्ष्मण को शेषनाग का. भरत और शत्रुघ्न को क्रमशः भगवान विष्णु द्वारा हाथों में धारण किए गए सुदर्शन चक्र और शंख-शैल का अवतार माना जाता है.
गुदाकेश लक्ष्मण
वनवास के 14 वर्षों के दौरान अपने भाई और भाभी की रक्षा के उद्देश्य से लक्ष्मण कभी सोते नहीं थे. इसके कारण उन्हें गुदाकेश के नाम से भी जाना जाता है. वनवास की पहली रात निद्रा देवी लक्ष्मण के सामने प्रकट हुई. लक्ष्मण ने निद्रा देवी से अनुरोध किया कि उन्हें ऐसा वरदान दें कि वनवास के 14 वर्षों के दौरान उन्हें नींद न आए. इस पर निद्रा देवी प्रसन्न होकर बोलीं कि अगर कोई तुम्हारे बदले 14 वर्षों तक सोए तो तुम्हें यह वरदान प्राप्त हो सकता है. इसके बाद लक्ष्मण की सलाह पर निद्रा देवी लक्ष्मण की पत्नी और सीता की बहन उर्मिला के पास पहुंचीं जिन्होंने सहर्ष बात मान ली और पूरे 14 वर्षों तक सोती रहीं.
रावण एक उत्कृष्ट वीणा वादक (रामायण से जुड़े अनजान पहलू)
रावण बहुत बड़ा विद्वान था जिसने वेदों का अध्ययन किया था लेकिन क्या आपको पता है कि रावण एक उत्कृष्ट वीणा वादक भी था जिसके कारण उसके ध्वज में प्रतीक के रूप में वीणा अंकित थी.
कुंभकरण को सोने का वरदान
एक बार एक यज्ञ की समाप्ति पर प्रजापति ब्रह्मा कुंभकरण के सामने प्रकट हुए और वरदान मांगने को कहा. हालांकि इंद्र को डर था कि कहीं कुंभकरण वरदान में इंद्रासन न मांग ले. अतः उन्होंने देवी सरस्वती से अनुरोध किया कि वे कुंभकरण की जिह्वा पर बैठ जाएं जिससे वह इंद्रासन के बजाय निद्रासन मांग ले. इस प्रकार इंद्र की वजह से कुंभकरण को सोने का वरदान प्राप्त हुआ था.